Saturday, 21 December 2013

एक सबक............


बख्तियार खिलजी जब नालन्दा विश्वविद्यालय (बिहार) की विशालकाय लाइब्रेरी की सारी
गहन ज्ञानपूर्ण पुस्तकें जला चुका तो वह,
भारतीय राजा के बचे खुचे दरबारियों को ढूँढ ढूँढकर मारने लगा।
जब वह अन्तिम ज्ञात दरबारी को मार रहा था तो
उस दरबारी ने भरे चौराहे पर चिल्लाकर कहा-
"अभी तो हम गुलाम होने जा रहे हैं,
मैं अपने भारतीय राजा को कोसना शुरू करने वाला था,
फिर मुझे याद आया कि,
आज मैं भारतीय राजा और इसकी शासन व्यवस्था की कमियों के खिलाफ पहली बार बोलने वाला हूँ,
जबकि सब कुछ हाथ से जा चुका है।
मेरा मन कहता है कि मुझे बोलने का कोई हक नहीं है।

क्योंकि मैंने सही समय पर सही ऍक्शन नहीं लिए।
मैं हमेशा अपनी कमीज साफ देखकर खुश रहा।

क्योंकि तब मैं कहाँ था जब हमारे ही हिन्दूशासित सिन्ध पर कासिम ने आक्रमण किया?
मैंने समझा कि सिन्ध तो बहुत उत्तर में है।
(और आज हम समझते हैं कि कश्मीर तो बहुत उत्तर में है)

तब मैं क्यों चुप था जब गुजरात पर महमूद गजनवी ने आक्रमण किया?
(तब मैं समझता था कि गुजरात में ट्रेन जलाई तो ट्रेन का ड्राइवर जाने)

तब मैं क्यों चुप था जब दिल्ली पर मुहम्मद गौरी ने आक्रमण किया?
(जब दिल्ली में बाटला आतंकी और तौकीर रजा समर्थित केजरीवाल को मैंने वोट देकर जिताया)

और फिर तब मैंने हिन्दूशाही वंश के राजा को समर्थन या मदद क्यों नहीं दी जब वह गजनवी
को हराने के लिए अकेले अपनी सेनाएँ लेकर बार-बार गया?
(मैंने सही समय पर भाजपा जैसी राष्ट्रवादी पार्टी को समर्थन क्यों नहीं दिया और उसे कोसने में क्यों समय बर्बाद किया?)

मैंने समझा कि मेरा काम नालन्दा की लाइब्रेरी में A.C. में बैठकर किताब पढ़ना और
किताब अच्छी लगने पर बारकोड रीडर द्वारा उसे इश्यू करवाकर घर बैठकर इन्टलैक्चुअल बनना ही है,
वैसे भी मैं तो उस नालन्दा University से हूँ जो देश-राष्ट्र से ऊपर है,
यहाँ देश-विदेश से लोग पढ़ रहे हैं,
मुझे इन 'लोकल' लोगों की छोटी सोच से ऊपर उठना चाहिये,
(I am from a Multinational/International University,
I am a cosmopolitan,
only fools speak of 'Jai Bharat' type of things. )

और उसका राजनीति से क्या लेना देना,
चाहे जो भी राजा बने मेरी किताबें तो मैं पढ़ता ही रहूँगा,
जाहिलों को किताबें पढ़ने में रत्ती भरी भी रुचि नहीं होती,
वो हमेशा संकट का अलार्म बजाते रहते हैं।

पर हाय रे मैं, किताबी कीड़ा,
आज उसी लाइब्रेरी को जलाकर नष्ट कर दिया गया है,
.................... और अब मेरी भी जान जाने को है।

"हे सुल्तान मुझे छोड़ दे मैं cosmopolitan हूँ,
C, C++ के अलावा मुझे Core Java भी पूरी आती है,
Design patterns भी काफी कुछ आते हैं,
बस एक दो दिन देगा तो उनमें भी Mastery हो जायेगी।
मैंने नालन्दा में कई International भाषाओं के novels पढ़े हुए हैं।"
(....................... हालाँकि मुझे पता है इन सब बातों से कुछ होना नहीं है................. sigh!)


हाँ.......................... फ़र्क तो पड़ता है भई !

(- कल्पना और सच्चाई का सन्तुलन)

- Hemant wikikosh

Friday, 18 October 2013

हिन्दू धर्म में मूर्ति पूजा क्यों?

इसे हिन्दू प्रतीकपूजा कहते हैं। अधिकांश हिन्दू इसके समर्थक हैं। लेकिन ऐसा अन्धाधुन्ध नहीं है। प्रतीक का अर्थ ही है कि इसके पीछे कुछ और है, जिसका प्रतिनिधि इसे 'माना' गया है। लेकिन कुछ हिन्दू वर्ग (जैसे- आर्यसमाजी) इसके समर्थक नहीं भी हैं। परन्तु ये सभी एक दूसरे की सदाशयता को समझते हैं और दूसरों की पूजापद्धति को तहस-नहस नहीं करते (इसका उल्टा, गजनवी के समय से मुसलमान करते आ रहे हैं, बल्कि मैंने तो पढ़ा है इस्लाम की उत्पत्ति के समय ही मूर्तियाँ तोड़ी गयी थीं।) 
मुसलमानों के लिए आश्चर्य की बात ये नहीं होनी चाहिये कि हिन्दू मूर्तिपूजा कैसे और क्यों करते हैं, बल्कि ये होनी चाहिये कि मूर्तिपूजा करने वाले और न करने वाले दोनों ही हिन्दू कैसे हो जाते हैं। यही बात उन्हें जिन्दगी भर समझ में नहीं आती है और इसी पेटदर्द को वो ये कहकर हल्का करते हैं कि मूर्तिपूजा करना मूर्खता है।

इस्लाम वस्तुतः धर्म न होकर एक कट्टर system of etiquettes है। मतलब ये कि इस्लाम का कार्य है ये define करना कि कोई आये तो हाथ कैसे घुमाएँ, सिर कितनी बार घुमाएँ आदि आदि। उसके आगे का लक्ष्य क्या है मुझे इस्लाम में इसका कोई indication दिखाई नहीं देता। हैं तो हिन्दू धर्म में भी ये सब नियम मौजूद, लेकिन क्योंकि हिन्दू जानते थे कि ये सब प्रतीक मात्र हैं और वास्तविक लक्ष्य मानव-कल्याण ही है, इसलिए इनके लिए कत्लेआम करने की सलाह नहीं दी गयी। क्योंकि जैसे डॉक्टर एक दवा दे और मरीज इतना असन्तुलित हो गया हो कि खाने को तैयार न हो तो, कोई भी समझदार व्यक्ति इस कारण से मरीज की हत्या नहीं कर सकता।

लेकिन इस्लाम के लिए न तो कोई मर्ज है न दवा, उन्हें तो मानो किसी ने सुपारी दी हुई है कि ये पदार्थ फलाँ व्यक्ति को खिलाकर आओ। और वो न खाए तो उसपर जो अत्याचार बन पड़े तब तक करो जबतक वो खा न ले। जब मैं किसी मुसलमान को हिन्दुओं की मूर्तिपूजा की निन्दा में अपना टाइम खराब करते देखता हूँ तो हँसी आती है क्योंकि मुझे ऐसा लगता है जैसे कोई ऐसा व्यक्ति जिसने जीवन में सिर्फ ship (जलयान) देखा हो, वो दूसरे देश की पनडुब्बी को पानी में गोता लगाता हुआ देखकर खुशी के मारे भागकर घर जाकर बताये कि पड़ोसियों का जहाज डूब गया है।

Monday, 14 October 2013

समझ विकसित कीजिए ......

कुछ लोग हिन्दू राष्ट्रवादियों का समर्थन ये कहकर नहीं करते कि हम तो धरम-वरम से वैसे भी दूर रहते हैं, चाहे हिन्दू धर्म हो या इस्लाम। इसलिए ये मुद्दे हमारे मतलब के नहीं। हिन्दू धर्म के खतरे पर प्रतिक्रिया वही लोग करें जो हिन्दू धर्म को कट्टर होकर मानते हैं। हिन्दू धर्म रहे या नहीं रहे इससे कम-से-कम हमारी जिन्दगी को कोई खास फरक नहीं पड़ने वाला।

लेकिन वे ये नहीं सोच पाते कि उन्हें धरम-वरम से मतलब न रखने की आज की ये छूट भी हिन्दू धर्म ही देता है। हिन्दू राष्ट्रवादियों का समर्थन न करने का मतलब है कि आपकी ये छूट भी जल्दी ही खत्म हो जायेगी। क्योंकि केन्या के मॉल में गोली आर-पार करते समय सिर्फ एक ही criteria होता है - कि आपको कुरान की आयतें याद हैं या नहीं। ये option नहीं दिया जाता कि - अगर आपको धरम-वरम से कोई मतलब नहीं है तो आपको कुरान की आयतें याद न हों तो भी चलेगा।............................ भैया, ये इस्लाम है। .................. जिस देश की राजधानी का नाम ही इस्लामाबाद है, वहीं पर मुसलमान नेता बेनजीर का क्या हाल हुआ सबने देखा है। और मलाला जैसी छोटी-मोटी महिलाओं की तो बात ही क्या करें। ............. ये सब कट्टरवाद की बलि चढ़े हुए लोग हैं। फिर भी धरम-वरम से मतलब न रखने वाले लोग चाहते हैं कि केवल कुछ लोग (हिन्दू राष्ट्रवादी), इन पापमय ताकतों से लोहा लेते रहें, और ताकि "धरम-वरम से मतलब न रखने" के उनके अधिकार की रक्षा होती रहे। बहुत ही शर्म की बात है।

Friday, 30 August 2013

अथ केजरीवाल जी चर्चा

अरविन्द केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी 2014 के चुनावों के क्षितिज पर एक अद्भुत प्रश्न बनकर उभरे हैं। इस लेख में मैंने इसी को केजरीवाल फ़ैक्टर का नाम दिया है। याद रहे, यह केजरीवाल फ़ैक्टर एक प्रश्न बनकर उभरा है, न कि एक उत्तर बनकर।
स्वामी रामदेव द्वारा किये गये जनजागरण और अन्ना हज़ारे जी के जन-आन्दोलन के बाद जो भ्रष्टाचार विरोधी भाव लहराने लगे, तब भ्रष्टाचार-विरोधियों की एक राजनीतिक पार्टी का प्रश्न बार-बार सामने आने लगा। अन्ना हज़ारे ने अपनी समझ से, और किरण बेदी जी ने अपनी समझ से ऐसा न करना ही उचित समझा। लेकिन अरविन्द केजरीवाल जी ने एक पार्टी बनाने का सही समय जाना। और मेरे विचार से यहीं पर वे गच्चा खा गये। इसके लिए उन्होंने वह तरीका चुना जो दशकों से कांग्रेस का गर्हित तरीका रहा है। यानी तुष्टीकरण का। हद तो तब हो गयी जब उन्हीं की टीम के प्रशान्त भूषण जी ने कश्मीर को जनमतसंग्रह करवाकर तदनुसार अलग भी कर देने का सुझाव दे डाला। उसके बाद बाटला हाउस काण्ड पर अरविन्द जी का स्वयं का बयान मानो सारी पिक्चर को क्लीअर कर देने के लिए काफी था। इसे हम प्रकृति का वरदान ही कहेंगे कि कांग्रेस का जो चेहरा दशकों बाद भारतीय जनता को समझ में आ सका (और तब कांग्रेस हारनी शुरू हुई 1977 में), आम आदमी पार्टी का वही चेहरा तुरन्त ही सामने आ गया। मानो दशकों की परिघटना (phenomenon) का एक लघु मॉडल आम आदमी पार्टी ने छोटे समयान्तराल के रूप में सामने रख दिया। अरविन्द जी का बयान था कि बाटला हाउस का एनकाउन्टर (जिसमें भारतीय कर्मचारियों को शहीद भी होना पड़ा था), फर्जी था। और इसके कुछ ही दिनों बाद हाईकोर्ट का फैसला आया जिसमें कोर्ट ने स्पष्ट निर्णय दिया कि एन्काउन्टर असली था। इसी दिन आम आदमी पार्टी ने फेसबुक पर पोस्ट किया कि हम इस निर्णय का स्वागत करते हैं। लगभग सभी को इस समय अरविन्द जी का पिछला बयान याद था और यह पोस्ट किसी थोड़ी सी समझ रखने वाले से भी हजम नहीं हुई।................................. जो भी हो, यह स्पष्ट हो गया कि आम आदमी पार्टी कोई नयी राजनीति सामने नहीं लाने वाली है। हालाँकि आज भी आम आदमी पार्टी के कार्यकर्त्ता यह कहकर इन बातों का बचाव करते हैं कि केजरीवाल के जरिये हमें जनलोकपाल चाहिये, और उसके लिए सत्ता में आना जरूरी है, और सत्ता में आने के लिए राजनीति तो करनी ही पड़ती है। लेकिन ये बात भी लोगों के हाजमे से परे है। कारण साफ है। "राजनीति तो करनी ही पड़ती है" क्या एक absolute statement हो सकता है? क्या इसकी कोई सीमा नहीं होगी? आखिर कितनी राजनीति तक ठीक माना जायेगा? क्या देश की जनता के हत्यारे आतंकियों को बख्श देना यह राजनीति का भाग हो सकता है? देश की जनता कैसे माने ले कि इस देश में वोटर इतना गिर गया है कि आतंकियों का समर्थन जब तक कोई पार्टी न करे तब तक उसे सत्ता में ही नहीं लाता? आखिर भाजपा ने देश को बिना आतंकियों का समर्थन किये सत्ता में आने का उदाहरण पहले ही दे दिया है। इसका अर्थ यह नहीं कि भाजपा की सभी नीतियाँ सही हों या हम उनसे सहमत ही हों। लेकिन हम यह तो कतई नहीं चाहेंगे कि दस साल से लुटेरों से (यानी सरकार में बैठे) मात खाते खाते अब खुद की लापरवाही व गलत फैसले से मात खा जायें। अतः अभी तक की घटनाओं से यह साफ निष्कर्ष निकलता है कि यह उचित ही है कि आम आदमी पार्टी से दूर रहा जाये। इन पंक्तियों का लेखक स्वयं सशक्त लोकपाल बिल का समर्थक रहा है, परन्तु लोकपाल बिल के लिए आतंकवाद और तुष्टीकरण को बढ़ावा देना समझदारी नहीं है।

Wednesday, 28 August 2013

एक सरल गणतीय समझ

Raijiv Dixit जी के नाम से संचालित फेसबुक पेज से -
 आज से 21 वर्ष पहले मनमोहन सिंह ने कहा था कि उदारीकरण और वैश्वीकरण के परिणाम 20साल में देखने को मिलेंगे!

परिणाम आज सामने है 1991 में 67टन सोना गिरवी रखा गया था और आज 2013 में 500टन सोना गिरवी रखने की नौबत आ गई है! वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने 500 टन सोना गिरवी रखने का सुझाव दिया है !

देश को इतना कंगाल कर दिया है कि कांग्रेस सरकार 500 टन
सोना गिरवी रखेगी !ये 500 टन सोना कितने का है ?आइये देखें !

अगर 10 ग्राम सोना --------------------- 30000 (30 हजार ) रुपए का

तो 100 ग्राम सोना होगा ------------------ 300000 (3 लाख ) रूपये का

तो 1 किलो होगा ---------------------------3000000 (30 लाख) रूपये का

तो 10 किलो होगा ---------------------------30000000 (3 करोड़ ) रूपये का

तो 100 किलो होगा ------------------------300000000 (30 करोड़ ) रूपये का

तो 1000 किलो (1टन) होगा --------------3000000000 (300 करोड़ ) रूपये का

तो 10000 किलो (10 टन) होगा -----------30000000000 (3000 करोड़ ) रूपये का

तो 100000 किलो(100 टन)------------------300000000000 (30000 हजार करोड़ ) रूपये का

तो 500000 किलो (500 टन)-----------------1500000000000(1 लाख 50 हजार करोड़ ) रूपये का


500 टन सोने की कीमत 1 लाख 50 हजार करोड़ है !
और मंदमोहन सिंह का एक कोयला घोटाला 1 लाख 80 हजार करोड़ का है बाकी घोटाले अलग है !

हो रहा है भारत नीलाम !

विचारिये................

क्या आप सोच सकते हैं कि विश्व के इस महाशक्तिशाली राष्ट्र के ऊपर ऐसी क्या विपत्ति आ गयी है? -

न्यूयॉर्क पुलिस ने मस्जिदों को आतंकवादी संगठन करार दिया!



http://aajtak.intoday.in/story/new-york-police-designates-mosques-as-terrorism-organizations-1-740359.html


मस्जिदों को आतंकवादी संगठन करार दिया

http://hindi.webdunia.com/news-international/%E0%A4%AE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9C%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A5%8B-%E0%A4%86%E0%A4%A4%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%A0%E0%A4%A8-%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE-1130828083_1.htm


Sunday, 25 August 2013

कैसे जीतती है कांग्रेस बार-बार - जादू कांग्रेस नहीं जनता करती है

Why Congress may win yet again;

By Akhilesh Dahiya Someone's interesting take:

Read carefully again and again, and understand!
Reasons why Congress is winning for the past 65 years and why it will win in the future:
(A view Point)

Currently, on an average (over states) there are:
15% Muslims, 8% Christians, 7% Others and 70% Hindus.
That means: out of 100 people, there are 70 Hindus, 8 Christians, 15 Muslims and 7 others.

Voter registration is as follows:
90% of Muslims, 90% Christians and 60% Hindus and 90% Others.
This means: out of 100 people, 42 Hindus, 14 Muslims, 7 Christians and 6 'Others' will register for vote.

Now, interesting point
Out of the registered voters having voter ID or at least having interest in selecting their representative.

Have a look at the number of turnouts:
50% Hindus will vote, 90% Muslims will vote, 90% Christians will vote and 90% others will vote.
This means: Ultimately 21 Hindus will vote, 13 Muslims will vote, 6 Christians and 5 'Others' will vote during
election and these 45 (45%) people are responsible for selecting the representative and deciding the future
of our dear Great mother land (India!!!)

Now see Out of these 45 people of total population who votes for whom!
It is highly likely that out of 13 Muslims, 10 will vote for Congress,
Out of 6 Christians, 5 will vote for Congress and
Out of 5 others, 3 will vote for congress.
it means: Congress will get 18 non Hindu votes, BJP may get 1 Muslim or Christian and 1 others vote.
So what BJP has got? BJP has got 2 non Hindu votes!

Other parties, that are third front, may get 2 Muslim or Christian and 1 vote from others. That is, 'Others'
may get 3 non Hindu votes.

VERY IMPORTANT

Coming to Hindu votes:
Out of 21 Hindus. > If 5 vote for Congress, 10 vote for BJP and 6 vote for other parties

Final result will be:
Congress 23 votes, BJP 12 votes, other parties will get 9 votes.
This has been the trend since 1990, therefore, Congress do not bother for Hindu votes!!!!

Congress loses in States where the Muslims do not vote for them.
If Congress scares minority from majority, which is easy in the name of burka "secularism",
their 90% work is done........
and they have been doing so religiously.........

It is highly likely that the trend will continue and may vary by few percent
and the Congress will remain in Power, as minority population increases, for
the next 100 years..

So what is the Mantra to thrash congress and defeat Islamic Terrorism?
1. Register yourself for Voter ID;
2. Get the Voter ID as soon as possible;
3. Do not go for picnic and picture during Election Day;
4. Vote for nationalist and patriotic leader on Election Day;
5. Islamic terrorism is growing rapidly and soon enter into India with a bang!

if we will celebrate the picnic and go for picture on election day, our children will not be alive to celebrate all these nice moments!

Our dear mother land is calling us, vote this time, and save it from Jihad!

- इन्टर्नेट से